अध्याय

  1. 1
  2. 2
  3. 3
  4. 4
  5. 5
  6. 6
  7. 7
  8. 8
  9. 9
  10. 10
  11. 11
  12. 12
  13. 13
  14. 14
  15. 15
  16. 16
  17. 17
  18. 18
  19. 19
  20. 20
  21. 21
  22. 22
  23. 23
  24. 24
  25. 25
  26. 26
  27. 27
  28. 28
  29. 29
  30. 30
  31. 31
  32. 32
  33. 33
  34. 34
  35. 35
  36. 36
  37. 37
  38. 38
  39. 39
  40. 40
  41. 41
  42. 42
  43. 43
  44. 44
  45. 45
  46. 46
  47. 47
  48. 48

पुराना विधान

नया विधान

यहेजकेल 19 हिंदी पवित्र बाइबल (HHBD)

1. और इस्राएल के प्रधानों के विषय तू यह विलापगीत सुना,

2. तेरी माता एक कैसी सिंहनी थी! वह सिंहों के बीच बैठा करती और अपने बच्चों को जवान सिंहों के बीच पालती पोसती थी।

3. अपने बच्चों में से उसने एक को पाला और वह जवान सिंह हो गया, और अहेर पकड़ना सीख गया; उसने मनुष्यों को भी फाड़ खाया।

4. और जाति जाति के लोगों ने उसकी चर्चा सुनी, और उसे अपने खोदे हुए गड़हे में फंसाया; और उसके नकेल डाल कर उसे मिस्र देश में ले गए।

5. जब उसकी मां ने देखा कि वह धीरज धरे रही तौभी उसकी आशा टूट गई, तब अपने एक और बच्चे को ले कर उसे जवान सिंह कर दिया।

6. तब वह जवान सिंह हो कर सिंहों के बीच चलने फिरने लगा, और वह भी अहेर पकड़ना सीख गया; और मनुष्यों को भी फाड़ खाया।

7. और उसने उनके भवनों को बिगाड़ा, और उनके नगरों को उजाड़ा वरन उसके गरजने के डर के मारे देश और जो कुछ उस में था सब उजड़ गया।

8. तब चारों ओर के जाति जाति के लोग अपने अपने प्रान्त से उसके विरुद्ध निकल आए, और उसके लिये जाल लगाया; और वह उनके खोदे हुए गड़हे में फंस गया।

9. तब वे उसके नकेल डाल कर और कठघरे में बन्द कर के बाबुल के राजा के पास ले गए, और गढ़ में बन्द किया, कि उसका बोल इस्राएल के पहाड़ी देश में फिर सुनाई न दे।

10. तेरी माता जिस से तू अत्पन्न हुआ, वह तीर पर लगी हुई दाखलता के समान थी, और गहिरे जल के कारण फलों और शाखाओं से भरी हुई थी।

11. और प्रभुता करने वालों के राजदणडों के लिये उस में मोटी मोटी टहनियां थीं; और उसकी ऊंचाई इतनी इुई कि वह बादलों के बीच तक पहुंची; और अपनी बहुत सी डालियों समेत बहुत ही लम्बी दिखाई पड़ी।

12. तौभी वह जलजलाहट के साथ उखाड़ कर भूमि पर गिराई गई, और उसके फल पुरवाई हवा के लगने से सूख गए; और उसकी मोटी टहनियां टूट कर सूख गईं; और वे आग से भस्म हो गई।

13. अब वह जंगल में, वरन निर्जल देश में लगाई गई है।

14. और उसकी शाखाओं की टहनियों में से आग निकली, जिस से उसके फल भस्म हो गए, और प्रभुता करने के योग्य राजदण्ड के लिये उस में अब कोई मोटी टहनी न रही। यही विलापगीत है, और यह विलापगीत बना रहेगा।