यह वही नगरी है, जो मगन रहती और निडर बैठी रहती थी, और सोचती थी कि मैं ही हूं, और मुझे छोड़ कोई है ही नहीं। परन्तु अब यह उजाड़ और वन पशुओं के बैठने का स्थान बन गया है, यहां तक कि जो कोई इसके पास हो कर चले, वह ताली बजाएगा और हाथ हिलाएगा।