17. और यहोवा का कोप तुम पर भड़के, और वह आकाश की वर्षा बन्द कर दे, और भूमि अपनी उपज न दे, और तुम उस उत्तम देश में से जो यहोवा तुम्हें देता है शीघ्र नष्ट हो जाओ।
18. इसलिये तुम मेरे ये वचन अपने अपने मन और प्राण में धारण किए रहना, और चिन्हानी के लिये अपने हाथों पर बान्धना, और वे तुम्हारी आंखों के मध्य में टीके का काम दें।
19. और तुम घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते-उठते इनकी चर्चा करके अपने लड़केबालों को सिखाया करना।
20. और इन्हें अपने अपने घर के चौखट के बाजुओं और अपने फाटकों के ऊपर लिखना;
21. इसलिये कि जिस देश के विषय में यहोवा ने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर कहा था, कि मैं उसे तुम्हें दूंगा, उस में तुम्हारे और तुम्हारे लड़केबालों की दीर्घायु हो, और जब तक पृथ्वी के ऊपर का आकाश बना रहे तब तक वे भी बने रहें।
22. इसलिये यदि तुम इन सब आज्ञाओं के मानने में जो मैं तुम्हें सुनाता हूं पूरी चौकसी करके अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो, और उसके सब मार्गों पर चलो, और उस से लिपटे रहो,
23. तो यहोवा उन सब जातियों को तुम्हारे आगे से निकाल डालेगा, और तुम अपने से बड़ी और सामर्थी जातियों के अधिकारी हो जाओगे।
24. जिस जिस स्थान पर तुम्हारे पांव के तलवे पड़ें वे सब तुम्हारे ही हो जाएंगे, अर्थात जंगल से लबानोन तक, और परात नाम महानद से ले कर पश्चिम के समुद्र तक तुम्हारा सिवाना होगा।