6. देखो, मेरे देश पर एक जाति ने चढ़ाई की है, वह सामर्थी है, और उसके लोग अनगिनित हैं; उसके दांत सिंह के से, और डाढ़ें सिहनी की सी हैं।
7. उसने मेरी दाखलता को उजाड़ दिया, और मेरे अंजीर के वृक्ष को तोड़ डाला है; उसने उसकी सब छाल छील कर उसे गिरा दिया है, और उसकी डालियां छिलने से सफेद हो गई हैं॥
8. जैसे युवती अपने पति के लिये कटि में टाट बान्धे हुए विलाप करती है, वैसे ही तुम भी विलाप करो।
9. यहोवा के भवन में न तो अन्नबलि और न अर्घ आता है। उसके टहलुए जो याजक हैं, वे विलाप कर रहे हैं।
10. खेती मारी गई, भूमि विलाप करती है; क्योंकि अन्न नाश हो गया, नया दाखमधु सूख गया, तेल भी सूख गया है॥