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यहेजकेल 20:3-18 हिंदी पवित्र बाइबल (HHBD)

3. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएली पुरनियों से यह कह, प्रभु यहोवा यों कहता है, क्या तुम मुझ से प्रश्न करने को आए हो? प्रभु यहोवा की यह वाणी है कि मेरे जीवन की सौगन्ध, तुम मुझ से प्रश्न करने न पाओगे।

4. हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू उनका न्याय न करेगा? क्या तू उनका न्याय न करेगा? उनके पुरखाओं के घिनौने काम उन्हें जता दे,

5. और उन से कह, प्रभु यहोवा यों कहता है, जिस दिन मैं ने इस्राएल को चुन लिया, और याकूब के घराने के वंश से शपथ खाई, और मिस्र देश में अपने को उन पर प्रगट किया, और उन से शपथ खाकर कहा, मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ,

6. उसी दिन मैं ने उन से यह भी शपथ खाई, कि मैं तुम को मिस्र देश से निकाल कर एक देश में पहुंचाऊंगा, जिसे मैं ने तुम्हारे लिये चुन लिया है; वह सब देशों का शिरोमणि है, और उस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं।

7. फिर मैं ने उन से कहा, जिन घिनौनी वस्तुओं पर तुम में से हर एक की आंखें लगी हैं, उन्हें फेंक दो; और मिस्र की मूरतों से अपने को अशुद्ध न करो; मैं ही तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।

8. परन्तु वे मुझ से बिगड़ गए और मेरी सुननी न चाही; जिन घिनौनी वस्तुओं पर उनकी आंखें लगी थीं, उनकी किसी ने फेंका नहीं, और न मिस्र की मूरतों को छोड़ा। तब मैं ने कहा, मैं यहीं, मिस्र देश के बीच मुम पर अपनी जलजलाहट भड़काऊंगा। और पूरा कोप दिखाऊंगा।

9. तौभी मैं ने अपने नाम के निमित्त ऐसा किया कि जिनके बीच वे थे, और जिनके देखते हुए मैं ने उन को मिस्र देश से निकलने के लिये अपने को उन पर प्रगट किया था उन जातियों के साम्हने वे अपवित्र न ठहरे।

10. मैं उन को मिस्र देश से निकाल कर जंगल में ले आया।

11. वहां उन को मैं ने अपनी विधियां बताईं और अपने नियम भी बताए कि जो मनुष्य उन को माने, वह उनके कारण जीवित रहेगा।

12. फिर मैं ने उनके लिये अपने विश्रामदिन ठहराए जो मेरे और उनके बीच चिन्ह ठहरें; कि वे जानें कि मैं यहोवा उनका पवित्र करने वाला हूँ।

13. तौभी इस्राएल के घराने ने जंगल में मुझ से बलवा किया; वे मेरी विधियों पर न चले, और मेरे नियमों को तुच्छ जाना, जिन्हें यदि मनुष्य माने तो वह उनके कारण जीवित रहेगा; और उन्होंने मेरे विश्रामदिनों को अति अपवित्र किया। तब मैं ने कहा, मैं जंगल में इन पर अपनी जलजलाहट भड़का कर इनका अन्त कर डालूंगा।

14. परन्तु मैं ने अपने नाम के निमित्त ऐसा किया कि वे उन जातियों के साम्हने, जिनके देखते मैं उन को निकाल लाया था, अपवित्र न ठहरे।

15. फिर मैं ने जंगल में उन से शपथ खाई कि जो देश मैं ने उन को दे दिया, और जो सब देशों का शिरोमणि है, जिस में दूध और मधु की धराएं बहती हैं, उस में उन्हें न पहुंचाऊंगा,

16. क्योंकि उन्होंने मेरे नियम तुच्छ जाने और मेरी विधियों पर न चले, और मेरे विश्रामदिन अपवित्र किए थे; इसलिये कि उनका मन उनकी मूरतों की ओर लगा रहा।

17. तौभी मैं ने उन पर कृपा की दृष्टि की, और उन्हें नाश न किया, और न जंगल में पूरी रीति से उनका अन्त कर डाला।

18. फिर मैं ने जंगल में उनकी सन्तान से कहा, अपने पुरखाओं की विधियों पर न चलो, न उनकी रीतियों को मानो और न उनकी मूरतें पूजकर अपने को अशुद्ध करो।

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