7. सो चाहे वे सुनें या न सुनें; तौभी तू मेरे वचन उन से कहना, वे तो बड़े बलवई हैं।
8. परन्तु हे मनुष्य के सन्तान, जो मैं तुझ से कहता हूँ, उसे तू सुन ले, उस बलवई घराने के समान तू भी बलवई न बनना; जो मैं तुझे देता हूँ, उसे मुंह खोल कर खा ले।
9. तब मैं ने दृष्टि की और क्या देख, कि मेरी ओर एक हाथ बढ़ा हुआ है और उस में एक पुस्तक है।
10. उसको उसने मेरे साम्हने खोल कर फैलाया, ओर वह दोनों ओर लिखी हुई थी; और जो उस में लिखा था, वे विलाप और शोक और दु:ख भरे वचन थे।