5. क्या तू हम पर सदा कोपित रहेगा? क्या तू पीढ़ी से पीढ़ी तक कोप करता रहेगा?
6. क्या तू हम को फिर न जिलाएगा, कि तेरी प्रजा तुझ में आनन्द करे?
7. हे यहोवा अपनी करूणा हमें दिखा, और तू हमारा उद्धार कर॥
8. मैं कान लगाए रहूंगा, कि ईश्वर यहोवा क्या कहता है, वह तो अपनी प्रजा से जो उसके भक्त है, शान्ति की बातें कहेगा; परन्तु वे फिर के मूर्खता न करने लगें।
9. निश्चय उसके डरवैयों के उद्धार का समय निकट है, तब हमारे देश में महिमा का निवास होगा॥
10. करूणा और सच्चाई आपस में मिल गई हैं; धर्म और मेल ने आपस में चुम्बन किया है।
11. पृथ्वी में से सच्चाई उगती और स्वर्ग से धर्म झुकता है।
12. फिर यहोवा उत्तम पदार्थ देगा, और हमारी भूमि अपनी उपज देगी।
13. धर्म उसके आगे आगे चलेगा, और उसके पांवों के चिन्हों को हमारे लिये मार्ग बनाएगा॥