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भजन संहिता 78:34-51 हिंदी पवित्र बाइबल (HHBD)

34. जब जब वह उन्हे घात करने लगता, तब तब वे उसको पूछते थे; और फिरकर ईश्वर को यत्न से खोजते थे।

35. और उन को स्मरण होता था कि परमेश्वर हमारी चट्टान है, और परमप्रधान ईश्वर हमारा छुड़ाने वाला है।

36. तौभी उन्होंने उससे चापलूसी की; वे उससे झूठ बोले।

37. क्योंकि उनका हृदय उसकी ओर दृढ़ न था; न वे उसकी वाचा के विषय सच्चे थे।

38. परन्तु वह जो दयालु है, वह अधर्म को ढांपता, और नाश नहीं करता; वह बारबार अपने क्रोध को ठण्डा करता है, और अपनी जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं देता।

39. उसको स्मरण हुआ कि ये नाशमान हैं, ये वायु के समान हैं जो चली जाती और लौट नहीं आती।

40. उन्होंने कितनी ही बार जंगल में उससे बलवा किया, और निर्जल देश में उसको उदास किया!

41. वे बारबार ईश्वर की परीक्षा करते थे, और इस्त्राएल के पवित्र को खेदित करते थे।

42. उन्होने न तो उसका भुजबल स्मरण किया, न वह दिन जब उसने उन को द्रोही के वश से छुड़ाया था;

43. कि उसने क्योंकर अपने चिन्ह मिस्त्र में, और अपने चमत्कार सोअन के मैदान में किए थे।

44. उसने तो मिस्त्रियों की नहरों को लोहू बना डाला, और वे अपनी नदियों का जल पी न सके।

45. उसने उनके बीच में डांस भेजे जिन्होंने उन्हे काट खाया, और मेंढक भी भेजे, जिन्होंने उनका बिगाड़ किया।

46. उसने उनकी भूमि की उपज कीड़ों को, और उनकी खेतीबारी टिड्डयों को खिला दी थी।

47. उसने उनकी दाखलताओं को ओेलों से, और उनके गूलर के पेड़ों को बड़े बड़े पत्थर बरसा कर नाश किया।

48. उसने उनके पशुओं को ओलों से, और उनके ढोरों को बिजलियों से मिटा दिया।

49. उसने उनके ऊपर अपना प्रचणड क्रोध और रोष भड़काया, और उन्हे संकट में डाला, और दुखदाई दूतों का दल भेजा।

50. उसने अपने क्रोध का मार्ग खोला, और उनके प्राणों को मृत्यु से न बचाया, परन्तु उन को मरी के वश में कर दिया।

51. उसने मित्र के सब पहिलौठों को मारा, जो हाम के डेरों में पौरूष के पहिले फल थे;

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