3. दुष्ट लोग जन्मते ही पराए हो जाते हैं, वे पेट से निकलते ही झूठ बोलते हुए भटक जाते हैं।
4. उन में सर्प का सा विष है; वे उस नाम के समान हैं, जो सुनना नहीं चाहता;
5. और सपेरा कैसी ही निपुणता से क्योंन मंत्र पढ़े, तौभी उसकी नहीं सुनता॥
6. हे परमेश्वर, उनके मुंह में से दांतों को तोड़ दे; हे यहोवा उन जवान सिंहों की दाढ़ों को उखाड़ डाल!