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नीतिवचन 31:6-19 हिंदी पवित्र बाइबल (HHBD)

6. मदिरा उस को पिलाओ जो मरने पर है, और दाखमधु उदास मन वालों को ही देना;

7. जिस से वे पी कर अपनी दरिद्रता को भूल जाएं और अपने कठिन श्रम फिर स्मरण न करें।

8. गूंगे के लिये अपना मुंह खोल, और सब अनाथों का न्याय उचित रीति से किया कर।

9. अपना मुंह खोल और धर्म से न्याय कर, और दीन दरिद्रों का न्याय कर।

10. भली पत्नी कौन पा सकता है? क्योंकि उसका मूल्य मूंगों से भी बहुत अधिक है। उस के पति के मन में उस के प्रति विश्वास है।

11. और उसे लाभ की घटी नहीं होती।

12. वह अपने जीवन के सारे दिनों में उस से बुरा नहीं, वरन भला ही व्यवहार करती है।

13. वह ऊन और सन ढूंढ़ ढूंढ़ कर, अपने हाथों से प्रसन्नता के साथ काम करती है।

14. वह व्यापार के जहाजों की नाईं अपनी भोजन वस्तुएं दूर से मंगवाती हैं।

15. वह रात ही को उठ बैठती है, और अपने घराने को भोजन खिलाती है और अपनी लौण्डियों को अलग अलग काम देती है।

16. वह किसी खेत के विषय में सोच विचार करती है और उसे मोल ले लेती है; और अपने परिश्रम के फल से दाख की बारी लगाती है।

17. वह अपनी कटि को बल के फेंटे से कसती है, और अपनी बाहों को दृढ़ बनाती है।

18. वह परख लेती है कि मेरा व्यापार लाभदायक है। रात को उसका दिया नहीं बुझता।

19. वह अटेरन में हाथ लगाती है, और चरखा पकड़ती है।

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