पुराना विधान

नया विधान

गिनती 35:12-28 हिंदी पवित्र बाइबल (HHBD)

12. वे नगर तुम्हारे निमित्त पलटा लेने वाले से शरण लेने के काम आएंगे, कि जब तक खूनी न्याय के लिये मण्डली के साम्हने खड़ा न हो तब तक वह न मार डाला जाए।

13. और शरण के जो नगर तुम दोगे वे छ: हों।

14. तीन नगर तो यरदन के इस पार, और तीन कनान देश में देना; शरणनगर इतने ही रहें।

15. ये छहों नगर इस्त्राएलियों के और उनके बीच रहने वाले परदेशियों के लिये भी शरणस्थान ठहरें, कि जो कोई किसी को भूल से मार डाले वह वहीं भाग जाए।

16. परन्तु यदि कोई किसी को लोहे के किसी हथियार से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए।

17. और यदि कोई ऐसा पत्थर हाथ में ले कर, जिस से कोई मर सकता है, किसी को मारे, और वह मर जाए, तो वह भी खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए।

18. वा कोई हाथ में ऐसी लकड़ी ले कर, जिस से कोई मर सकता है, किसी को मारे, और वह मर जाए, तो वह भी खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए।

19. लोहू का पलटा लेने वाला आप ही उस खूनी को मार डाले; जब भी वह मिले तब ही वह उसे मार डाले।

20. और यदि कोई किसी को बैर से ढकेल दे, वा घात लगाकर कुछ उस पर ऐसे फेंक दे कि वह मर जाए,

21. वा शत्रुता से उसको अपने हाथ से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो जिसने मारा हो वह अवश्य मार डाला जाए; वह खूनी ठहरेगा; लोहू का पलटा लेने वाला जब भी वह खूनी उसे मिल जाए तब ही उसको मार डाले।

22. परन्तु यदि कोई किसी को बिना सोचे, और बिना शत्रुता रखे ढकेल दे, वा बिना घात लगाए उस पर कुछ फेंक दे,

23. वा ऐसा कोई पत्थर ले कर, जिस से कोई मर सकता है, दूसरे को बिना देखे उस पर फेंक दे, और वह मर जाए, परन्तु वह न उसका शत्रु हो, और न उसकी हानि का खोजी रहा हो;

24. तो मण्डली मारने वाले और लोहू का पलटा लेने वाले के बीच इन नियमों के अनुसार न्याय करे;

25. और मण्डली उस खूनी को लोहू के पलटा लेने वाले के हाथ से बचाकर उस शरणनगर में जहां वह पहिले भाग गया हो लौटा दे, और जब तक पवित्र तेल से अभिषेक किया हुआ महायाजक न मर जाए तब तक वह वहीं रहे।

26. परन्तु यदि वह खूनी उस शरणस्थान के सिवाने से जिस में वह भाग गया हो बाहर निकलकर और कहीं जाए,

27. और लोहू का पलटा लेने वाला उसको शरणस्थान के सिवाने के बाहर कहीं पाकर मार डाले, तो वह लोहू बहाने का दोषी न ठहरे।

28. क्योंकि खूनी को महायाजक की मृत्यु तक शरणस्थान में रहना चाहिये; और महायाजक के मरने के पश्चात वह अपनी निज भूमि को लौट सकेगा।

पूरा अध्याय पढ़ें गिनती 35