7. सुनो, वह रात बांझ हो जाए; उस में गाने का शब्द न सुन पड़े
8. जो लोग किसी दिन को धिक्कारते हैं, और लिब्यातान को छेड़ने में निपुण हैं, उसे धिक्कारें।
9. उसकी संध्या के तारे प्रकाश न दें; वह उजियाले की बाट जोहे पर वह उसे न मिले, वह भोर की पलकों को भी देखने न पाए;
10. क्योंकि उसने मेरी माता की कोख को बन्द न किया और कष्ट को मेरी दृष्टि से न छिपाया।
11. मैं गर्भ ही में क्यों न मर गया? पेट से निकलते ही मेरा प्राण क्यों न छूटा?
12. मैं घुटनों पर क्यों लिया गया? मैं छातियों को क्यों पीने पाया?
13. ऐसा न होता तो मैं चुपचाप पड़ा रहता, मैं सोता रहता और विश्राम करता,
14. और मैं पृथ्वी के उन राजाओं और मन्त्रियों के साथ होता जिन्होंने अपने लिये सुनसान स्थान बनवा लिए,
15. वा मैं उन राजकुमारों के साथ होता जिनके पास सोना था जिन्होंने अपने घरों को चान्दी से भर लिया था;
16. वा मैं असमय गिरे हुए गर्भ की नाईं हुआ होता, वा ऐसे बच्चों के समान होता जिन्होंने उजियाले को कभी देखा ही न हो।
17. उस दशा में दुष्ट लोग फिर दु:ख नहीं देते, और थके मांदे विश्राम पाते हैं।
18. उस में बन्धुए एक संग सुख से रहते हैं; और परिश्रम कराने वाले का शब्द नहीं सुनते।
19. उस में छोटे बड़े सब रहते हैं, और दास अपने स्वामी से स्वतन्त्र रहता है।