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अय्यूब 29:12-20 हिंदी पवित्र बाइबल (HHBD)

12. क्योंकि मैं दोहाई देने वाले दीन जन को, और असहाय अनाथ को भी छुड़ाता था।

13. जो नाश होने पर था मुझे आशीर्वाद देता था, और मेरे कारण विधवा आनन्द के मारे गाती थी।

14. मैं धर्म को पहिने रहा, और वह मुझे ढांके रहा; मेरा न्याय का काम मेरे लिये बागे और सुन्दर पगड़ी का काम देता था।

15. मैं अन्धों के लिये आंखें, और लंगड़ों के लिये पांव ठहरता था।

16. दरिद्र लोगों का मैं पिता ठहरता था, और जो मेरी पहिचान का न था उसके मुक़द्दमे का हाल मैं पूछताछ कर के जान लेता था।

17. मैं कुटिल मनुष्यों की डाढ़ें तोड़ डालता, और उनका शिकार उनके मुंह से छीनकर बचा लेता था।

18. तब मैं सोचता था, कि मेरे दिन बालू के किनकों के समान अनगिनत होंगे, और अपने ही बसेरे में मेरा प्राण छूटेगा।

19. मेरी जड़ जल की ओर फैली, और मेरी डाली पर ओस रात भर पड़ी,

20. मेरी महिमा ज्यों की त्यों बनी रहेगी, और मेरा धनुष मेरे हाथ में सदा नया होता जाएगा।

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