अध्याय

  1. 1
  2. 2
  3. 3
  4. 4
  5. 5
  6. 6
  7. 7
  8. 8
  9. 9
  10. 10
  11. 11
  12. 12
  13. 13
  14. 14
  15. 15
  16. 16
  17. 17
  18. 18
  19. 19
  20. 20
  21. 21
  22. 22
  23. 23
  24. 24
  25. 25
  26. 26
  27. 27
  28. 28
  29. 29
  30. 30
  31. 31
  32. 32
  33. 33
  34. 34
  35. 35
  36. 36
  37. 37
  38. 38
  39. 39
  40. 40
  41. 41
  42. 42

पुराना विधान

नया विधान

अय्यूब 26 हिंदी पवित्र बाइबल (HHBD)

1. तब अय्यूब ने कहा,

2. निर्बल जन की तू ने क्या ही बड़ी सहायता की, और जिसकी बांह में सामर्थ्य नहीं, उसको तू ने कैसे सम्भाला है?

3. निर्बुद्धि मनुष्य को तू ने क्या ही अच्छी सम्मति दी, और अपनी खरी बुद्धि कैसी भली भांति प्रगट की है?

4. तू ने किसके हित के लिये बातें कही? और किसके मन की बातें तेरे मुंह से निकलीं?

5. बहुत दिन के मरे हुए लोग भी जलनिधि और उसके निवासियों के तले तड़पते हैं।

6. अधोलोक उसके साम्हने उघड़ा रहता है, और विनाश का स्थान ढंप नहीं सकता।

7. वह उत्तर दिशा को निराधार फैलाए रहता है, और बिना टेक पृथ्वी को लटकाए रखता है।

8. वह जल को अपनी काली घटाओं में बान्ध रखता, और बादल उसके बोझ से नहीं फटता।

9. वह अपने सिंहासन के साम्हने बादल फैला कर उसको छिपाए रखता है।

10. उजियाले और अन्धियारे के बीच जहां सिवाना बंधा है, वहां तक उसने जलनिधि का सिवाना ठहरा रखा है।

11. उसकी घुड़की से आकाश के खम्भे थरथरा कर चकित होते हैं।

12. वह अपने बल से समुद्र को उछालता, और अपनी बुद्धि से घपण्ड को छेद देता है।

13. उसकी आत्मा से आकाशमण्डल स्वच्छ हो जाता है, वह अपने हाथ से वेग भागने वाले नाग को मार देता है।

14. देखो, ये तो उसकी गति के किनारे ही हैं; और उसकी आहट फुसफुसाहट ही सी तो सुन पड़ती है, फिर उसके पराक्रम के गरजने का भेद कौन समझ सकता है?