11. क्या तू अन्धियारे को नहीं देखता, और उस बाढ़ को जिस में तू डूब रहा है?
12. क्या ईश्वर स्वर्ग के ऊंचे स्थान में नहीं है? ऊंचे से ऊंचे तारों को देख कि वे कितने ऊंचे हैं॥
13. फिर तू कहता है कि ईश्वर क्या जानता है? क्या वह घोर अन्धकार की आड़ में हो कर न्याय करेगा?
14. काली घटाओं से वह ऐसा छिपा रहता है कि वह कुछ नहीं देख सकता, वह तो आकाशमण्डल ही के ऊपर चलता फिरता है।
15. क्या तू उस पुराने रास्ते को पकड़े रहेगा, जिस पर वे अनर्थ करने वाले चलते हैं?
16. वे अपने समय से पहले उठा लिए गए और उनके घर की नेव नदी बहा ले गई।