17. तौभी मुझ से कोई उपद्रव नहीं हुआ है, और मेरी प्रार्थना पवित्र है।
18. हे पृथ्वी, तू मेरे लोहू को न ढांपना, और मेरी दोहाई कहीं न रुके।
19. अब भी स्वर्ग में मेरा साक्षी है, और मेरा गवाह ऊपर है।
20. मेरे मित्र मुझ से घृणा करते हैं, परन्तु मैं ईश्वर के साम्हने आंसू बहाता हूँ,
21. कि कोई ईश्वर के विरुद्ध सज्जन का, और आदमी का मुक़द्दमा उसके पड़ोसी के विरुद्ध लड़े।
22. क्योंकि थोड़े ही वर्षों के बीतने पर मैं उस मार्ग से चला जाऊंगा, जिस से मैं फिर वापिस न लौटूंगा।