5. वरन यहोवा के भवन के दोनों आंगनों में भी उसने आकाश के सारे गण के लिये वेदियां बनाईं।
6. फिर उसने हिन्नोम के बेटे की तराई में अपने लड़के-बालों को होम कर के चढ़ाया, और शुभ-अशुभ मुहूर्तों को मानता, और टोना और तंत्र-मंत्र करता, और ओझों और भूतसिद्धि वालों से व्यवहार करता था। वरन उसने ऐसे बहुत से काम किए, जो यहोवा की दृष्टि में बुरे हैं और जिन से वह अप्रसन्न होता है।
7. और उसने अपनी खुदवाई हुई मूर्ति परमेश्वर के उस भवन में स्थापन की जिसके विषय परमेश्वर ने दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान से कहा था, कि इस भवन में, और यरूशलेम में, जिस को मैं ने इस्राएल के सब गोत्रों में से चुन लिया है मैं अपना नाम सर्वदा रखूंगा,
8. और मैं ऐसा न करूंगा कि जो देश मैं ने तुम्हारे पुरखाओं को दिया था, उस में से इस्राएल फिर मारा मारा फिरे; इतना अवश्य हो कि वे मेरी सब आज्ञाओं को अर्थात मूसा की दी हुई सारी व्यवस्था और विधियों और नियमों को पालन करने की चौकसी करें।
9. और मनश्शे ने यहूदा और यरूशलेम के निवासियों यहां तक भटका दिया कि उन्होंने उन जातियों से भी बढ़ कर बुराई की, जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से विनाश किया था।
10. और यहोवा ने मनश्शे और उसकी प्रजा से बातें कीं, परन्तु उन्होंने कुछ ध्यान नहीं दिया।