12. मेरे लिए एक घर वही बनाएगा, और मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्थिर रखूंगा।
13. मैं उसका पिता ठहरूंगा और वह मेरा पुत्र ठहरेगा; और जैसे मैं ने अपनी करुणा उस पर से जो तुझ से पहिले था हटाई, वैसे मैं उस पर से न हटाऊंगा,
14. वरन मैं उसको अपने घर और अपने राज्य में सदैव स्थिर रखूंगा और उसकी राजगद्दी सदैव अटल रहेगी।
15. इन सब बातों और इस दर्शन के अनुसार नातान ने दाऊद को समझा दिया।
16. तब दाऊद राजा भीतर जा कर यहोवा के सम्मुख बैठा, और कहने लगा, हे यहोवा परमेश्वर! मैं क्या हूँ? और मेरा घराना क्या है? कि तू ने मुझे यहां तक पहुंचाया है?
17. और हे परमेश्वर! यह तेरी दृष्टि में छोटी सी बात हुई, क्योंकि तू ने अपने दास के घराने के विषय भविष्य के बहुत दिनों तक की चर्चा की है, और हे यहोवा परमेश्वर! तू ने मुझे ऊंचे पद का मनुष्य सा जाना है।
18. जो महिमा तेरे दास पर दिखाई गई है, उसके विषय दाऊद तुझ से और क्या कह सकता है? तू तो अपने दास को जानता है।
19. हे यहोवा! तू ने अपने दास के निमित्त और अपने मन के अनुसार यह बड़ा काम किया है, कि तेरा दास उसको जान ले।
20. हे यहोवा! जो कुछ हम ने अपने कानों से सुना है, उसके अनुसार तेरे तुल्य कोई नहीं, और न तुझे छोड़ और कोई परमेश्वर है।