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रोमियो 1:14-31 हिंदी पवित्र बाइबल (HHBD)

14. मैं यूनानियों और अन्यभाषियों का और बुद्धिमानों और निर्बुद्धियों का कर्जदार हूं।

15. सो मैं तुम्हें भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूं।

16. क्योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिये कि वह हर एक विश्वास करने वाले के लिये, पहिले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिये उद्धार के निमित परमेश्वर की सामर्थ है।

17. क्योंकि उस में परमेश्वर की धामिर्कता विश्वास से और विश्वास के लिये प्रगट होती है; जैसा लिखा है, कि विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा॥

18. परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं।

19. इसलिये कि परमेश्वर के विषय का ज्ञान उन के मनों में प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।

20. क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते है, यहां तक कि वे निरुत्तर हैं।

21. इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्धेरा हो गया।

22. वे अपने आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए।

23. और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशमान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगने वाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला॥

24. इस कारण परमेश्वर ने उन्हें उन के मन के अभिलाषाओं के अुनसार अशुद्धता के लिये छोड़ दिया, कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें।

25. क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई को बदलकर झूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन॥

26. इसलिये परमेश्वर ने उन्हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहां तक कि उन की स्त्रियों ने भी स्वाभाविक व्यवहार को, उस से जो स्वभाव के विरूद्ध है, बदल डाला।

27. वैसे ही पुरूष भी स्त्रियों के साथ स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरूषों ने पुरूषों के साथ निर्लज्ज़ काम करके अपने भ्रम का ठीक फल पाया॥

28. और जब उन्होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा, इसलिये परमेश्वर ने भी उन्हें उन के निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें।

29. सो वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्टता, और लोभ, और बैरभाव, से भर गए; और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईर्षा से भरपूर हो गए, और चुगलखोर,

30. बदनाम करने वाले, परमेश्वर के देखने में घृणित, औरों का अनादर करने वाले, अभिमानी, डींगमार, बुरी बुरी बातों के बनाने वाले, माता पिता की आज्ञा न मानने वाले।

31. निर्बुद्धि, विश्वासघाती, मायारिहत और निर्दय हो गए।

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