20. फिर उस ने कहा; जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।
21. क्योंकि भीतर से अर्थात मनुष्य के मन से, बुरी बुरी चिन्ता, व्यभिचार।
22. चोरी, हत्या, पर स्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं।
23. ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं॥
24. फिर वह वहां से उठकर सूर और सैदा के देशों में आया; और एक घर में गया, और चाहता था, कि कोई न जाने; परन्तु वह छिप न सका।
25. और तुरन्त एक स्त्री जिस की छोटी बेटी में अशुद्ध आत्मा थी, उस की चर्चा सुन कर आई, और उसके पांवों पर गिरी।
26. यह यूनानी और सूरूफिनीकी जाति की थी; और उस ने उस से बिनती की, कि मेरी बेटी में से दुष्टात्मा निकाल दे।
27. उस ने उस से कहा, पहिले लड़कों को तृप्त होने दे, क्योंकि लड़कों की रोटी लेकर कुत्तों के आगे डालना उचित नहीं है।
28. उस ने उस को उत्तर दिया; कि सच है प्रभु; तौ भी कुत्ते भी तो मेज के नीचे बालकों की रोटी का चूर चार खा लेते हैं।
29. उस ने उस से कहा; इस बात के कारण चली जा; दुष्टात्मा तेरी बेटी में से निकल गई है।