20. मैं तो यही हादिर्क लालसा और आशा रखता हूं, कि मैं किसी बात में लज्ज़ित न होऊं, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूं या मर जाऊं।
21. क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है।
22. पर यदि शरीर में जीवित रहना ही मेरे काम के लिये लाभदायक है तो मैं नहीं जानता, कि किस को चुनूं।
23. क्योंकि मैं दोनों के बीच अधर में लटका हूं; जी तो चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूं, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है।