22. पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज,
23. और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं।
24. और जो मसीह यीशु के हैं, उन्होंने शरीर को उस की लालसाओं और अभिलाषाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है॥
25. यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्मा के अनुसार चलें भी।
26. हम घमण्डी होकर न एक दूसरे को छेड़ें, और न एक दूसरे से डाह करें।