7. और धर्मी लूत को जो अधमिर्यों के अशुद्ध चाल-चलन से बहुत दुखी था छुटकारा दिया।
8. ( क्योंकि वह धर्मी उन के बीच में रहते हुए, और उन के अधर्म के कामों को देख देख कर, और सुन सुन कर, हर दिन अपने सच्चे मन को पीडित करता था)।
9. तो प्रभु के भक्तों को परीक्षा में से निकाल लेना और अधमिर्यों को न्याय के दिन तक दण्ड की दशा में रखना भी जानता है।
10. निज करके उन्हें जो अशुद्ध अभिलाषाओं के पीछे शरीर के अनुसार चलते, और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं: वे ढीठ, और हठी हैं, और ऊंचे पद वालों को बुरा भला कहने से नहीं डरते।
11. तौभी स्वर्गदूत जो शक्ति और सामर्थ में उन से बड़े हैं, प्रभु के साम्हने उन्हें बुरा भला कह कर दोष नहीं लगाते।