1. बुद्धि ने अपना घर बनाया और उसके सातों खंभे गढ़े हुए हैं।
2. उस ने अपने पशु वध कर के, अपने दाखमधु में मसाला मिलाया है, और अपनी मेज़ लगाई है।
3. उस ने अपनी सहेलियां, सब को बुलाने के लिये भेजी है; वह नगर के ऊंचे स्थानों की चोटी पर पुकारती है,
4. जो कोई भोला हे वह मुड़ कर यहीं आए! और जो निर्बुद्धि है, उस से वह कहती है,
5. आओ, मेरी रोटी खाओ, और मेरे मसाला मिलाए हुए दाखमधु को पीओ।