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کتاب عهد عتیق

عهد جدید

مزمور 138 هزارۀ نو (NMV)

خداوند را سپاس می‌گویم

مزمور داوود.

1. خداوندا، تو را به تمامی دل سپاس می‌گویم؛در حضور ’خدایان‘ برای تو می‌سرایم.

2. به سوی معبد مقدس تو پرستش می‌کنم،و به سبب محبت و وفاداری تو،نامت را سپاس می‌گویم!زیرا که تو نام خویش و کلامِ خود راعظمتی برتر از هر چیز بخشیده‌ای.

3. در روزی که خواندم، مرا اجابت فرمودی؛و مرا در دلم شجاع ساختی!

4. خداوندا، باشد که شاهان زمین جملگی تو را بستایند،چون کلام دهان تو را بشنوند،

5. و در وصف راههای خداوند بسرایند،زیرا که جلال خداوند عظیم است.

6. اگرچه خداوند متعال است،بر افتادگان نظر می‌کند،ولی متکبران را از دور می‌شناسد.

7. اگرچه در میان تنگی راه می‌روم،تو جان مرا حفظ خواهی کرد!دست خود را بر خشم دشمنانم دراز خواهی کرد،و دست راستت مرا نجات خواهد داد.

8. خداوند قصد خویش را برای من به انجام خواهد رسانید؛خداوندا، محبت تو جاودانه است،کارهای دست خویش را رها مکن.